Sangeeta singh

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पुनर्जन्म भाग_1

मेरा विश्वास कह रहा था,वो लौट कर अवश्य आएगा।आज की रात बहुत भयानक है,मूसलाधार बारिश देख मेरे जहन में पुरू का चेहरा घूम घूम कर आ रहा है।
पुरु को मैंने बचपन से खिलाया था ,उसकी मां नहीं थी।बचपन में ही भगवान को प्यारी हो गई थी।पिता ने दूसरी शादी कर ली थी।जिससे उसका एक सौतेला भाई भी था नीलेश।सौतेली मां जैसा कि माना जाता है कि ,बुरी होगी उतनी भी बुरी नहीं थी।लेकिन पुरू का ख्याल मै ही रखती थी ।
        मै कौन हूं......

पहले आप सबको अपना परिचय तो दे दूं।
मैं शादी के बाद पुरू की मां के साथ आयी उनकी एक सेविका थी।जो यहीं रतनपुर में इसी परिवार की हो गई,सभी मेरा सम्मान करते थे।मैंने शादी भी नहीं की,कहीं नहीं गई।इस परिवार को छोड़।
पुरु की पढ़ाई  पटना विश्वविद्यालय से पूरी हुई।उसने जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस  जमशेदपुर,से मास्टर ऑफ सोशल वेलफेयर किया।
      यहीं उसे प्रिया से प्यार हो गया।दोनों साथ साथ गावों में जाते अपने प्रोजेक्ट के सिलसिले में,आदिवासियों के उत्थान की योजना बनाते ,प्रारूप तय करते और उसे क्रियान्वित करते।
प्रिया बहुत सुंदर,और सर्वगुणसंपन्न थी।
पुरु उसे घर लाया था ,एक ही नजर में वह मुझे भा गई थी।
नीलेश तो उसे देखता ही रह गया। जहां पुरू पढ़ाई और नौकरी कर रहा था,वहीं नीलेश पिता का कारोबार संभाले था।
लेकिन ज्यादा लाड़- प्यार से पला नीलेश बहुत उदंड था।रात रात पार्टी करना , लोगों से लड़ाई झगड़ा करना ,ये सब उसके शगल थे।
प्रिया को देखते ही ,उसके दिल में गुदगुदी सी होने लगी थी।
पुरु के पिता ने दोनों की शादी बड़े धूमधाम से की।
पिता ने जिद की , कि बेटा अब मुझसे दूर मत जा,अब मेरे जिंदगी के कितने वसंत बचे हैं,मेरे सामने ही रहकर अपना कारोबार संभाल ,नीलेश अकेला पड़ जाता है।दोनों भाई मिलकर कारोबार को नई ऊंचाई पर पहुंचाओ।
पिता के आग्रह को पुरू टाल ना सका।और वहीं बोरिंग रोड स्थित अपने मकान पर रह गया।
नीलेश को यह सब अच्छा नहीं लगा।

वह  क्रोधाग्नि से धधक उठा।अभी तक पूरा कारोबार उसके कंधे पर था। उसने कई माफियाओं से संबंध बना रखे थे।
उसके खर्चे बेहिसाब थे।
कारोबार में कोई खास मुनाफा नहीं हो रहा था।
अब पुरू रोज़ ऑफिस जाने लगा। जबकि अब नीलेश ने ऑफिस आना बंद कर दिया,आता भी कैसे !इतने घपले जो किये थे उसने।
वह अपने दोस्तों के साथ शराब के नशे में डूबा रहता।

कई अनियमितता लॉग बुक में मिली  ,स्टाफ ठीक से काम नहीं कर रहे थे।
पुरु ने उस समय नीलेश को कुछ भी नहीं कहा।लेकिन पूरे स्टाफ को नियंत्रित किया।उनमें नई ऊर्जा का संचार किया। कार्यशैली में बदलाव किया।ब्रेक में उनके लिए इंडोर गेम के कोर्ट बनवाए।
      सभी स्टाफ खुश थे उन्हें ऑफिस में काम करने के लिए अच्छा माहौल दिया , पुरू ने।
कंपनी का प्रोडक्शन बढ़ गया।
अपने अनाप शनाप के खर्च से नीलेश के उपर काफी उधार हो गया था।एक दिन शराब के नशे मेंऑफिस आया ,तब पुरू ने पूरे स्टाफ के सामने उसे खरी खोटी सुनाई।

   वह वहां से चला गया ,लेकिन उसने इस बेइज्जती का बदला लेने कि कसम खाई।
    उस दिन के बाद वह पहले वाला नीलेश ना रहा,वह काफी संजीदा हो गया था।
सभी से प्यार से बातें करता ।उसने अपने आप को पूरी तरह बदल लिया।
उद्योग संघ के चुनाव में जीत हासिल कर नेता बन गया।
सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा था।लेकिन कुछ दिनों बाद नीलेश की मां की मौत हो गई,और पिता कोमा में चले गए ,और कुछ ही दिन बाद उनकी मौत हो गई।

मैं भी छप्पन की हो रही थी ,मैंने घर की पूरी जिम्मेदारी प्रिया को दे दी।यही सोचा कि नीलेश का ब्याह हो जाए तो मैं गंगासागर तीरथ हो आऊं।
पुरु सबसे पहले ऑफिस से आता तो सबसे पहले मुझसे ही मिलता।
     आज बारिश बहुत हो रही थी ।तेज़ तेज़ बिजली भी कड़क रही थी।
शाम के 7 बजने को थे । अभी तक पुरू आया नहीं, मैं और प्रिया दोनों परेशान थे ,फिर लगा शायद बारिश रुकने का इंतजार कर रहा होगा।
  तभी कार के रुकने की आवाज़ आयी।शोफर ने जैसे गेट खोला,तभी  चीखने की आवाज़ आई।किसी ने पुरू पर कुल्हाड़ी से हमला किया था।और बारिश के कारण वो भाग भी गया ,और किसी ने उसका चेहरा भी नहीं देखा।

हम सब दौड़े,लेकिन पुरू तड़प रहा था,उसने कुछ बोलना चाहता था ,लेकिन बोलने के लिए जबान उसका साथ नहीं दे रहे थे और जब तक हम कुछ करते उसका शरीर सदा के लिए शांत हो चुका था।उसकी आंखों में एक बेबसी साफ नजर आ रही थी।

पुलिस आयी ,और  अज्ञात पर  केस  दर्ज कर अपनी खाना पूर्ति कर दी।शक भी किसपर करते , पुरू का स्वभाव इतना अच्छा था कि कोई भी उसका दुश्मन नहीं था।

नीलेश का मुंह तो भैया भैया कहते ना थकता।
धीरे धीरे केस की फाइल बंद हो गई।
प्रिया गुमशुम रहती थी, आंखे शून्य को निहारती।उसकी हालत मुझसे देखी ना जाती।
मैं उसे समझाती,हमने उसकी काउंसलिंग कराई ।डॉक्टर ने अकेला न छोड़ने और अधिक ध्यान देने की सलाह दी ।
नीलेश  लगातार उसके अवसाद को दूर करने का प्रयास करने लगा। वह उसे हंसाता , घुमाने ले जाता।मैं खुश थी ,आखिर उसका प्रयास रंग लाया,प्रिया ठीक हो गई।

कुछ दिनों के बाद  नीलेश ने प्रिया से शादी कर ली।अब प्रिया नीलेश की पत्नी थी।
सब अपनी अपनी दुनिया में आगे बढ़ चुके थे ,मुझे छोड़।

पुरु के जाने के बाद ,मेरा वात्सल्य का रस सूख गया था। मेरे लिए खुशी शब्द जैसे जिंदगी के शब्दकोश से दूर हो चुका था।
मुझे बार बार पुरु की वो आंखें याद आती जैसे कह रहा हो
वो आएगा....
क्रमशः




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5 Comments

Seema Priyadarshini sahay

12-Jan-2022 09:18 PM

बहुत बढ़िया लिखा मैम

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🤫

12-Jan-2022 10:38 AM

Intresting

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Punam verma

12-Jan-2022 08:38 AM

Nice

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